सैर तीसरे दरवेश की
गरज़ वह रात बहुत
मुश्किल से काटी। फज्र को फिर जाकर हाज़िर हुआ ,और उसी ख्वाजा के साथ फिर महल में पंहुचा। वही आलम जो कल
देखा था ,देखा। बादशाह ज़ादी ने मुझे और हर एक को अपने अपने काम पर रुखसत किक्या। जब
परछा हुआ। खिलवत (अकेलापन) में उठ गयी और मुझे तलब किया। जब मैं वहा गया ,बैठने का
हुक्म किया। मैं आदाब बजा लाया और बैठ गया। फ़रमाया की यहाँ जो तू आया और यह असबाब लाया
,इसमें मुनाफा कितना मंज़ूर है ? मैंने अर्ज़
की कि आपके क़दम की बड़ी ख्वाहिश थी ,सो खुदा ने मयस्सर की। अब मैंने सब कुछ भर पाया और दोनों जहांन की सआदत हासिल हुई। और क़ीमत
जो कुछ फहरिस्त में है ,निस्फ़ की खरीद है , और निस्फ़ नाफ़अ है। फ़रमाया : नहीं ,जो ककमात
तूने लिखी है ,वह इनायत होगी। बल्कि और भी इनआम दिया जायेगा . बस शर्त यह की एक काम तुझसे हो सके तो हुक्म करू।
मैंने कहा की गुलाम का जान व माल अगर सरकार के काम आये तो मैं अपने आपको खूबी समझू और आँखों से करू। यह सुन कर कलमदान याद फ़रमाया। एक शुक्क़ा लिखा और मोतियों की दुलमियाँ रख कर ,एक रुमाल शबनम का ऊपर लपेट कर मेरे हवाले किया। और एक अंगूठी निशाँ के वास्ते ऊँगली से उतार दी। और कहा की इस तरफ को एक बड़ा बाग़ है। मैं यह अंगूठी देना और हमारी तरफ से दुआ कहना और इस खत का जवाब मांगना। लेकिन जल्द आना ,अगर खाना वहा कहते हो तो पानी यहाँ पीना। इस काम का इनाम तुझे ऐसा दूंगी कि तू देखेगा . मैं रुखसत हुआ और पूछता पूछता चला। क़रीब दो कोस के जब गया ,वह बाग़ नज़र पड़ा। जब पास पंहुचा ,एक अज़ीज़ मुसलह मुझको पकड़ के दरवाज़े में बाग़ के ले गया। देखु तो एक जवान शेर की सी सूरत ,सोने की कुर्सी पर ज़िरह दाउदी पहने ,चार आईना बांधे ,फौलादी खुद सर पर धरे ,निहायत शान व शौकत से बैठा है। पांसे जवान तैयार ,ढाल तलवार हाथ में लिए ,और तरकश कमान बांधे खड़े है।
मैंने सलाम किया।
मुझे नज़दीक बुलाया। मैंने वह खात्म दी ,और खुशामद की बाते कर कर वह रुमाल दिखाया ,और
शुक्क़े के भी लाने का अहवाल कहा। उसने सुनते
ही ऊँगली दांतो से काटी ,और सर धुन कर बोला की शायद तेरी अजल तुझको ले आयी है। उसमे एक जवान क़ैद है।
उसको यह खत दे कर ,जवाब लेकर ,जल्दी फिर आ।
मैं शिताब बाग़ में घुसा। बाग़ किया था ,गोया जीते जी बहिश्त में गया। एक एक चमन
रंग बा रंग का फूल रहा था , और फव्वारे छूट रहे थे ,जानवर चहचहे मार रहे
थे। मैं सीधा चला गया और उस दरख्त में वह पिंजरा देखा। उसमे एक जवान हसींन नज़र
आया। मैंने अदब से सलाम किया। और सर्बा मुहर
पिंजरे की तीलियों की राह से दिया .वह अज़ीज़
रुका खोल कर पढ़ने लगा। और मुझसे मुश्ताक़ वारा अहवाल मलका का पूछने लगा।
अभी बाते तमाम न हुई थीं की एक फ़ौज जंगियो की नमूद हुई ,और चारो तरफ से मुझ पर आ टूटी ,और बे तहाशा परछी व तलवार मरने लगी। एक आदमी निहथे की बिसात क्या ? एक दम में चूर ज़ख़्मी कार दिया। मुझे कुछ अपनी सुध बुध न रही। फिर जो होश आया ,अपने आपको चारपाई पर पाया की दो पियादे उठाये लिए जाते है और आपस में बाते करते जाते है। एक ने कहा : उस मुर्दे की लोथ को मैदान में फ़ेंक दो ,कुत्ते कव्वे खा जायँगे। दूसरा बोला : अगर बादशाह तहक़ीक़ करे और यह खबर पहुंचे तो जीता गढ़वा देंगे और बाल बच्चो को कोल्हू में पर्वा दे। क्या हमें अपनी जान भारी पड़ी है ,जो ऐसी न माक़ूल हरकत करे।
मैंने यह गुफ्तुगू सुन कर ,दोनों याजूज माजूज से कहा की वास्ते खुदा के मुझ पर रहम करो अभी मुझमे जान बाक़ी है। जब मर जाऊंगा ,जो तुम्हारा जी चाहे वो करना। लेकिन यह तो कहो मुझ पर यह क्या बीती ,मुझे क्यू मारा ,और तुम कौन हो। भला इतना तो कह सुनाओ। तब उन्होंने रहम खा कर कहा की वह जवान ताले में बंद है ,उस बादशाह का भतीजा है। और पहले इसका बाप तख़्त नशीन था। मौत के वक़्त यह वसीयत अपने भाई को की कि अभी मेरा बेटा जो वारिस इस सल्तनत का है ,लड़का और बे शाऊर है ,कारोबार बादशाहत का खैर ख़्वाही और होशयारी से तुम किया करना। जब यह बालिग हो ,अपनी बेटी से शादी इसकी कर देना। और मुख़्तार तमाम मुल्क और ख़ज़ाने का करना।
यह कह कर उन्होंने वफ़ात पायी और सल्तनत की नौबत छोटे भाई पर आयी। उसने वसीयत पर अमल न किया ,बल्कि दीवाना और सौदाई मशहूर करके पिंजरे में डाल दिया। और चौकी गाढ़ी चारो तरफ बाग़ के रखी है की परिंदा पर नहीं मार सकता। और कई मर्तबे ज़हरीला हल दिया है ,लेकिन ज़िन्दगी ज़बरदस्त है ,असर नहीं किया। अब वह शहज़ादी और यह शहज़ादा दोनों आशिक़ माशूक़ बन रहे है। और घर में रहे है और तड़पे है। तेरे हाथ शौक़ कारनामा उसने भेजा। यह खबर हरकारों ने खुद बादशाह को पहुचायी। हब्शियो का ग्रुप आया। तेरा यह अहवाल किया और उस जवान क़ैदी के क़तल की वज़ीर से तदबीर पूछी ,उस नमक हराम ने मलका को राज़ी किया है उस बे गुनाह को बादशाह के हुज़ूर अपने हाथ से मार डाले।
मैंने कहा : चलो मरते मरते यह भी तमाशा देख ले। आखिर राज़ी हो कर वह दोनों और मैं ज़ख़्मी ,चुपके एक गोशे में जाकर खड़े हुए। देखा तो तख़्त पर बादशाह बैठा है ,और मलका जल्लाद बन कर ,तलवार लिए हुए ,अपने आशिक़ को क़त्ल करने को आयी। जब नज़दीक पहुंची ,तलवार फ़ेंक दी और गले में चिमट गयी। तब वह आशिक़ बोला की ऐसे मरने पर मैं राज़ी हु ,यहाँ भी तेरे आरज़ू है ,वहा भी तेरी तमन्ना रहेगी। मलका बोली इस बहाने से मैं तेरे को देखने क आयी थी। बादशाह यह हरकत देख कर सख्त गुस्सा हुआ और वज़ीर को डांटा किंतु यह तमाशा मुझे दिखलाने को लाया था ? माहल्ली मलका को जुड़ा करके महल में ले गए। .और वज़ीर ने खफा हो कर तलवार उठायी और बादशाह जड़े के ऊपर दौड़ा कि एक ही वार में काम उस बेचारे का तमाम करे। जो चाहता है की तेगा चलाये ,ग्येब से एक तीर नागहानी उसकी पेशानी पर बैठा की दो सार हो गया और गिर पड़ा।
बादशाह यह वारदात
देख कर महल में घुस गए ,जवान को फिर ताले में बंद करके बाग़ में ले गए ,मैं भी वहा से
निकला .राह में एक आदमी मुझे बुला कर मलका
के हुज़ूर में ले गया। मुझे घायल देख कर , एक जर्राह बुलाया
और निहायत क़ायदे से फ़रमाया की इस जवान
को जल्द चंगा करके ,गुसल शिफा का दे ,यही तेरा मुजरा है। उसके ऊपर जितनी मेहनत तू करेगा
,वैसा ही इनआम सरफ़राज़ी पायेगा। गरज़ वह जर्राह
इरशाद मलका के ,वैसे ही किया ,एक चिल्ले में
नहला धुला ,मुझे हुज़ूर में ले गया। मलका ने पूछा की अब तो कुछ कसर बाक़ी नहीं रही ?
मैंने कहा की आपकी धयान से अब हट्टा कट्टा हु। तब मलका ने कपडे और बहुत से रूपये जो
फरमाए थे ,बल्कि उससे भी दो चंद अता किये और
रुखसत किया।
मैंने वहा से सब रफ़ीक़ और नौकर चाकर को लेकर वहा से चला। जब इस मुक़ाम पर पंहुचा सबको कहा : तुम अपने वतन को जाओ .और मैंने उस पहाड़ पर यह मकान और उसकी सूरत बना कर ,अपना रहना मुक़र्रर किया। और नोकरो और गुलामो को मुनासिब हर एक की क़द्र के रूपये देकर आज़ाद किया। और यह कह दिया की जब तक मैं जीता हु। मेरे ताक़त की खबर गिरी तुम्हे ज़रूर है ,आगे मुख़्तार हूँ। अब वही अपनी नमक हलाली से मेरे खाने की खबर लेते है। और मैं बा खातिर जमा इस बुत की पूजा करता हु। जब तलक जीता हु ,मेरा यही काम है। यह मेरी सर गज़ीश्त है ,जो तूने सुनी। या फक़र अल्लाह ! मैंने बा मुजर्रद सुनने इस क़िस्से के ,कफनी गले में डाली और फ़क़ीरों का लिबास किया और इश्तियाक़ में फरंग के मुल्क के देखने के रवाना हुआ ,कितने एक अरसे में जंगल पहाड़ो की सैर करता हुआ मजनू और फरहाद की सूरत बन गया।
आखिर मेरे शौक़ ने इस शहर तक पहुंचाया। गली कूचे में बावला सा फिरने लगा। अक्सर मलका के महल के आस पास रहा करता ,लेकिन कोई ऐसा ढब न होता जो वहा तलक रसाई हो। अजब हैरानी थी की जिस वास्ते कशी कर कर गया ,वह मतलब हाथ न आया। एक दिन बाजार में खड़ा था की एक बारगी आदमी भागने लगा और दूकान दार दुकाने बंद करके चले गए। या वह रौनक थी ,या सुनसान हो गया। एक तरफ से एक जवान रुस्तम का सा कल्ला जबड़ा ,शेर की तरह गूंजता और तलवार दो दस्ती झाड़ता हुआ ,ज़िरह गले में ,और टॉप सर पर ,और तमंचे की जोड़ी कमर में ,काफी की तरह झुकता नज़र आया। और उसके पीछे दो गुलाम लड़की की पोशाक पहने एक ताबूत मखमल कशानि से मूढ़ा हुआ सर पर लिए चले आते है।
मैंने यह तमाशा देख कर साथ चलने का इरादा किया। जो कोई आदमी मेरी नज़र पड़ता ,मुझे मना करता। लेकिन मैं कब सुनता हु ? रफ्ता रफ्ता वह जवान मर्द एक आली शान मकान में चला ,मैं भी साथ हुआ। उसने फिरते ही चाहा की एक हाथ मारे और मुझे दो टुकड़े करे। मैंने उसे क़सम दी की मैं भी यही चाहता हु ,मैंने अपना खून माफ़ किया ,किसी तरह मुझे इस ज़िन्दगी के अज़ाब से छुड़ा दे की निहयात तंग आया हु। मैं जान बूझ कर तेरे सामने आया हु। देर मत कर ,मुझे मरने पर साबित क़दम देख कर खुदा ने उसके दिल में रहम डाला और गुस्सा भी ठंडा हुआ। बहुत तवज्जह और मेहरबानी से पूछा की तू कौन है और क्यू अपनी ज़िन्दगी से बेज़ार हुआ है ?
मैंने ने कहा : ज़रा बैठे तो कहु ,मेरा क़िस्सा बहुत दूरदराज़ है , और इश्क़ के निचे मैं गिरफ्तार हु ,इस सबब से लाचार हु। यह सुन कर उसने अपनी कमर खोली और हाथ मुंह धो धा कर कुछ नाश्ता किया। जब फारिग हो कर बैठा। बोला : कह तुझ पर क्या गुज़री ? मैं सब वारदात उस पीर मर्द की और मलका की और अपने वहा जाने की कह सुनाई। पहले सुन कर रोया और यह कह कर कि इस कम्बख्त ने किस किस का घर घाला। लेकिन भला तेरा इलाज मेरे हाथ में है मुमकिन है की इस आसी के सबब से तू अपनी मुराद को पहुंचे। और तू अंदेशा न कर और खातिर जमा रख। हिज्जाम को कहा कि इसकी हजामत करके हम्माम (नहला) करा दे। एक जोड़ा कपड़ा उसके गुलाम ने लाकर पहनाया। तब मुझसे कहने लगा कि यह ताबूत जो तूने देखा इसी शहज़ादा मरहूम का है ,जो क़ैद में था। उसको दूसरे वज़ीर ने आखिर मकर से मारा। उसकी तो निजात हुई की मज़लूम मारा गया। मैंने भी उस वज़ीर को तलवार से मारा ,और बादशाह के मारने का इरादा किया। बादशाह गिड़गिड़या और सौगंद खाने लगा की मैं बे गुनाह हु। मैंने उसे नामर्द जान कर छोड़ दिया। जबसे मेरा काम यही है की हर महीने की नो चंदी जुमेरात को ,मैं इस ताबूत की इसी तरह शहर में लिए फिरता हु ,और इसका मातम करता हु।
उसकी ज़बानी यह
अहवाल सुन कर मुझे तसल्ली हुई की अगर यह चाहेगा तो मेरा मक़सद पूरा हो जायेगा। खुदा
ने बड़ा अहसान किया जो ऐसे जुनूनी को मुझ पर
मेहरबान किया। सच है ,खुदा मेहरबान हो तो कुल मेहरबान है। जब शाम हुई और आफ़ताब ग़ुरूब
हुआ ,उस जवान ने ताबूत को निकाला और एक गुलाम
के ज़रिये वह ताबूत मेरे सर पर रखा और अपने साथ लेकर चला। फरमाने लगा कि मलका के नज़दीक
जाता हु ,तेरी सिफारिश ज़रूर करूँगा। तू हरगिज़
कुछ न करना ,चुपके बैठा सुना करना। मैंने कहा : जो कुछ साहब फरमाते है ,सो वही करूँगा ,खुदा तुमको सलामत रखे। जो मेरे अहवाल पर तरस खाते
हो। उस जवान ने रुख बादशाही बाग़ का किया। जब
अंदर दाखिल हुआ ,एक चबूतरा संग मरमर का हश्त (आठ) पहलु बाग़ में था और उसपर एक नामगीरा सफ़ेद बादल का ,मोतियों की झालर लगी हुई ,इल्मास (हीरा) के इस्तादो
पर खड़ा था। और एक मसनद बिछी हुई थी ,गाव तकिया और बगली तकिये लगे हुए थे। वह ताबूत
वहा रखवाया। और हम दोनों को फ़रमाया की उस दरख्त
के पास जाकर बैठो।
बाद एक खड़ी के आग की की रौशनी नज़र आयी। मलका,आप कई कनीज़ों के साथ अहतमाम करती हुई ,तशरीफ़ लायी। लेकिन उदासी और नाराज़गी चेहरे पर ज़ाहिर थी। आके मसनद पर बैठी। यह कोका अदब से अगर पीछे खड़ा रहा ,फिर अदब से दूर फर्श के किनारे अदब से बैठा। फातिहा पढ़ीं और कुछ बाते करने लगा। मैं कान लगाए सुन रहा था। आखिर उस जवान ने कहा की मलका जहा सलामत ! मुल्क अज्म का शहज़ादा ,आपकी खूबिया और महबूबिया गायबाना सुन कर अपनी सल्तनत को बर्बाद दे ,फ़क़ीर बन ,और बड़ी मेहनत खींच कर यहाँ तलक आ पंहुचा है ,साई तेरे कार ने छोड़ा शहर ब्लग ,और इस शहर में दिनों से हैरान परसशन फिरता है। आखिर वह इरादा मरने का करके मेरे साथ लग चला। मैंने तलवार से डराया ,उसने गर्दन आगे रख दी ,और क़सम दी की अब मैं यही चाहता हु ,देर मत कर। गरज़ तुम्हारे इश्क़ में साबित है। मैंने खूब आज़माया ,सब तरह पूरा पाया ,इस सबब से उसका मज़कूर में दरमियान लाया। अगर हुज़ूर से उसके अहवाल पर मुसाफिर जान कर तवज्जह हो ,तो खुदा तरसी और हक़ शनासी से दूर नहीं।
यह ज़िर्क सुन कर मलका ने फ़रमाया : कहा है ? अगर शहज़ादा है तो कोई परेशानी नहीं है सामने आये। वह कोका वहा से उठ कर आया और मुझे साथ लेकर गया। मैं मलका के देखने से निहायत शाद हुआ ,लेकिन अक़्ल व होश बर्बाद हुए ,आलम सिकवत (ख़ामोशी) का छा गया। या हवा न पड़ा की कुछ कहु। एकदम में मलका सिधारी और कोका अपने मकान को चला। घर आकर बोला की मैंने तेरी हक़ीक़त शुरू से आखिर तक मलका को कह सुनाई और सिफारिश भी की ,अब तू हमेशा रात को बिला नागा जाया कर और ऐश ख़ुशी मनाया कर। मैं उसके क़दम पर गिर पड़ा। उसने गले लगा लिया। तमाम दिन घड़िया गिनता रहा की कब साँझ हो ,जो मैं जाऊं ,जब रात हुई ,मैं उस जवान से रुखसत होकर चला, और पाएं बाग़ में मलका के चबूतरे पर तकिया लगा कर जा बैठा।
बाद एक घड़ी के मलका तन तनहा एक ख्वास (कनीज़) के साथ लेकर आहिस्ता आहिस्ता आकर मसनद पर बैठी। ख़ुशी से यह दिन नसीब हुआ। मैंने क़दम बोस किया। उन्होंने सर मेरा उठा लिया और गले से लगा लिया ,और बोली की इस फुर्सत को गनीमत जान और मेरा कहा मान। मुझे यहाँ से ले निकल। किसी और मुल्क ले चल। मैंने कहा : चलिए। यह कर हम दोनों बाग़ के बाहिर तो हुए ,पर हैरत से और ख़ुशी हाथ पाव फूल गए ,और राह भूल गए। और एक तरफ को चले जाते थे , पर कुछ ठिकाना नहीं पाते थे ,मलका बोली मैं थक गयी हु ,तेरा मकान कहा है ? जल्द चल कर पहुंच नहीं तो क्या क्या चाहता है ? मेरे पाव में फफोले पड़ गए है ,रास्ता में कही बैठ जाउंगी।